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बुधवार, 23 अप्रैल 2008

टेसू के छक्के

काला धंधा
अपनी ही सरकार का, पानी का व्यापार।
मिनरल वाटर बन गया, बीस लिटर जल जार।
बीस लिटर जल जार, चकाचक चांदी होगी।
अफसर-नेता-ख़ास जन, ऐसे जल के भोगी।
`टेसू' सुन ले रेल नीर, तू भी बिकने वाला।
सभी भूल पुण्य प्याऊ का , करते धंधा काला।
























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गांधी का देश
धर्म युद्ध का हो गया, अक्षर धाम शिकार।
बरसों से है बस रहा, ‘शीश’ में हाहाकर।
‘शीश’ में हाहाकर, बची न संसद भैया।
‘पाक’ पड़ौसी बना, और है भारत गैया।
‘टेसू’ चांटे खा रहे, गाल बहुत हैं शेष।
पूरी दुनिया जानती, यह गांधी का देश।
























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नया साल
नये साल का आगमन, नव आशा संचार।
धर्म युद्ध बादल छंटें, उन्माद रहित घर-द्वार।
उन्माद रहित घर-द्वार, चैन की बंसी बाजे।
जले ज्ञान का दीप, शीश सद्बुद्धि विराजे।
'टेसू' शिक्षित जग मुआ, अनपढ़ रहता ठीक।
नहीं गुरु सद्गुरू मिले, या नहीं मानी सीख।



















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1 टिप्पणी:

  1. आपका ब्लाग देखा, आप के प्रयास की मैं भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूं। हिंदी ब्लाग की दुनिया मैं अपकी शौहरतें खीब बढ़ें मेरी मंगल कामनाएं।
    पं. सुरेश नीरव
    मों ९८१०२४३९६६

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