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मंगलवार, 9 जून 2009

खानपान

तर्कसंगत नहीं आयोडीनयुक्त नमक का उपयोग

आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घंघा देश के एक सीमित क्षेत्र में ही होता है। इसी क्षेत्र का अधिकांश भाग बेहद गरीबी और अशिक्षा के कारण कुपोषण का शिकार है। इस तरह मुख्य रूप से आयोडीन ही नहीं कुपोषण भी रोग या रोगों के लिए जिम्मेदार हैं। परन्तु बिना सर्वेक्षण के मूल समस्या को समझने की बजाय पूरे देश पर साधारण नमक के उपयोग पर कठोरता से रोक लगा दी गयी। इस तरह इस देश के करोडों उपभोक्ता सालों से गैरजरूरी आयोडीन के नाम पर रोजाना लूटे जा रहे हैं।

आपने शायद अपने घर आयी नमक की थैली को देखा हो। उस पर अधिकतम खुदरा मूल्य 10, 11 और अधिक रुपये अंकित होने लगा है। जो नमक कुछ दशक पहले घर में छाने गये आटे की भुसी या चोकर, कांच के टुकड़ों, लोहे-लंगड़ जैसे कबाड़ के बदले भी बड़े-छोटे डेलों के रूप में आसानी से मिल जाया करता था वही नमक साफ-सफाई और आयोडीन के नाम पर थैली में बन्द कर शुरू में 2 रुपये प्रति किलो बेचा गया। आज अनेक बड़ी कम्पनियां नमक पैक कर जनता को आयोडीन खिलाखिलाकर बुद्धिमान बनाने में जुटी हुई हैं। कुछ बरस पहले आयोडीन युक्त नमक की बिक्री पर रोक लगाने को लेकर उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ द्वारा एक याचिका भी स्वीकार की गयी थी। यह उपभोक्ता कल्याण की दिशा में एक सार्थक पहल थी।

साधारण नमक की बिक्री पर रोक लगाकर केवल आयोडीन युक्त नमक के उपयोग की अनिवार्यता का सरकारी आदेश राजनीतिज्ञों के चहेते कुछ उद्योगपतियों के हित में दिया गया। मनमाने भाव पर नमक का बिकना सरकार की इसी तानाशाही और अपने पिट्ठुओं को लाभ पहुंचाने तथा लाभ पाने की कवायद का परिणाम है। आज भारी महंगाई के बोझ तले दबा उपभोक्ता बेहद महंगे नमक को भी झेलने के लिए अभिशप्त है।

सर्वोदयी नेता ठाकुर दास बंग के अनुसार आयोडीनयुक्त नमक ही बेचे जाने का 29 जनवरी 1998 को आदेश निकाला गया। इस आदेश का उल्लंघन करने वाले को 6 माह की सजा हो सकती है, साथ ही 1000 रुपये का जुर्माना भी। इस आदेश को जारी करने से पहले देश की लोक सभा या किसी राज्य की विधान सभा में चर्चा तक नहीं की गयी। केन्द्र सरकार ने पिछले दरवाजे से आयोडीनयुक्त नमक को जनता पर लाद दिया। श्री बंग आगे कहते हैं कि कुछ राजनेता और विदेशी कम्पनियां मिलकर हमारे नमक उद्योग को बरबाद करने में जुट गये हैं। हालांकि इस आदेश को लेकर लोगों ने अनेक स्थानों प्रदर्शन-विरोध किये। दांडी से साबरमती आश्रम तक ‘दांडी यात्रा’ भी निकाली गयी। संत तुकड़ोजी महाराज के शिष्य य संत तुका राम दादा ने इस नमक आदेश का उल्लंघन भी किया। गुजरात में भी जगह-जगह लोगों ने प्रदर्शन कर विरोध जताया।

आयोडीन की कमी से होने वाला घेंघा रोग हजार में से केवल दो लोगों को होता है। सरकार द्वारा किया जाने वाला प्रचार एक घोखा है। शरीर के लिए आवश्यक आयोडीन हमें भोजन और नमक से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता प्रशासन लोगों को आवश्यता से अधिक आयोडीन खाने को मजबूर कर रहा है। वास्तविकता यह है कि आयोडीन का आवश्ययकता से अधिक उपयोग घातक सिद्ध हो सकता है। चिकित्सक की सलाह पर ही आयोडीनयुक्त नमक के उपयोग को आवश्ययक माना जाना चहिए। लेकिन सादा नमक के उपयोग पर पाबन्दी लगाने का क्या औचित्य है! आयोडीन की कमी से होने वाले घेंघा रोग को लेकर धुंआधार प्रचार कर लोगों को डराया गया। भले ही यह पूरे देश की समस्या नहीं थी पर इस बहाने आयोडीनयुक्त नमक को पूरे देश पर थोप दिया गया। यह स्वार्थी राजनीति के षड्यन्त्र का एक निकृष्ट उदाहरण है।

उललेखनीय है कि आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घैंघा देश के एक सीमित क्षेत्र में ही होता है। इसी क्षेत्र का अधिकांश भाग बेहद गरीबी और अशिक्षा के कारण कुपोषण का शिकार है। इस तरह मुख्य रूप से आयोडीन ही नहीं कुपोषण भी रोग या रोगों के लिए जिम्मेदार हैं। परन्तु बिना सर्वेक्षण के मूल समस्या को समझने की बजाय पूरे देश पर साधारण नमक के उपयोग पर कठोरता से रोक लगा दी गयी। इस तरह इस देश के करोड़ों उपभोक्ता सालों से गैरजरूरी आयोडीन के नाम पर रोजाना लूटे जा रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए कि अन्य समस्याओं के साथ आयोडीन की कमी वाले क्षेत्रों का अध्ययन किये जाने के बाद ही केवल सम्बन्धित क्षेत्र में ही आवश्यकतानुसार आयोडीनयुक्त नमक के उपयोग को लागू किया जाता। इसके अलावा आयोडीनयुक्त और सादा नमक के उपयोग को स्वैच्छिक रखा जाना चाहिए।
टी.सी. चन्दर
सौजन्य: प्रभासाक्षी
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