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शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

दयानन्द सरस्वती

महर्षि दयानन्द को नमन
(187वां जन्मोत्सव, 27 फ़रवरी 2011)
दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्पष्ट किया है कि मांस भक्षण से मानव मात्र का अपकार होता है, जीवों का पालन करने से प्राणी मात्र का उपकार होता है। स्वामी दयानन्द जी ने नारी शिक्षा आरम्भ करायी।उनको वेद पढ़ने का अधिकार दिलाया। आज यह महर्षि की ही देन है कि देश की महिलाएं अबला से सबला बन गयीं हैं। उन्होंने विधवाओं का पुनर्विवाह कराया। उन्होंने छुआछूत का सदा विरोध किया। 
उन्नीसवीं सदी में चारों ओर अराजकता का बोलबाला था। नर हत्या को खेल समझने वाले ठगों के आतंक से जनता सदा त्रस्त रहती थी। सामाजिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि चार आश्रमों और चार वर्णों की दृढ़ नींव पर टिके समाज की एक-एक चूल हिल रही थी। छुआछूत ने समाज को हजारों भागों में बांट दिया था। कन्याओं को गला घोंटकर मार दिया जाता था। विधवाओं को ढोल-धमाकों के साथ जबर्दस्ती सती कर देने को परम धर्म समझा जाता था। हजारों वर्ष के अपने पतन के सिलसिले को देखकर भारत मां खून के आंसू रो रही थी। ऐसे घनघोर अंधेरे में अचानक एक बिजली सी चमकी, रेगिस्तान में जैसे अमृत की धारा बह गयी। भारत मां को एक लाल मिल गया जिसको महर्षि दयानन्द सरस्वती के नाम से जाना जाता है।
सन्‌ 1824 में फ़ाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी को गुजरात में टंकारा ग्राम में श्रीकृष्ण जी के घर एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम मूलशंकर रख गया। बाद में शिक्षा व योग्यता के आधार पर विद्वानों ने इनको दयानन्द सरस्वती नाम दिया। वह प्रकाश का रक्षक एवं प्रचारक था। वह प्राणी मात्र का रक्षक था। वह सांसारिक प्रलोभनों और भोगों से लोहा लेने वाला धुरन्धर योद्धा और विजेता था। दयानन्द वह महामानव थाजिसने अध्यात्म को क्रियात्मक रूप देने में अभूतपूर्व सफ़लता प्राप्त की। उन्होंने कहा था कि योगी बनो, साथ ही कर्मयोगी भी बनो।वेदों की ओर लौटो। आत्मज्ञानी बनो परन्तु मानव भी बनो। वह उन व्यक्तियों में से थे जिन्हें वेद और ब्राह्मण ग्रन्थों का अध्ययन करके देवताओं की श्रेणी में अग्रणी माना जाता था। वे मानव जाति की प्रेरणा और आदर के पात्र रहे, आज भी हैं और सदा रहेंगे।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सर्वप्रथम स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने कहा था कि सुराज से स्वराज्य श्रेष्ठ है। स्वतन्त्रता संग्राम में 85% लोग उनके अनुयायी थे। कॉंग्रेस का इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है। जितने भी शहीद हुए हैं उनके बारे में पता चलता है कि उनके प्रेरणास्रोत महर्षि दयानन्द ही थे।
अन्याय और काले धन का विरोध कर रहे योगगुरू के रूप में विख्यात बाबा रामदेव महर्षि दयानन्द सरस्वती के ही परम भक्त हैं। दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्पष्ट किया है कि मांस भक्षण से मानव मात्र का अपकार होता है, जीवों का पालन करने से प्राणी मात्र का उपकार होता है। स्वामी दयानन्द जी ने नारी शिक्षा आरम्भ करायी। उनको वेद पढ़ने का अधिकार दिलाया। आज यह महर्षि की ही देन है कि देश की महिलाएं अबला से सबला बन गयीं हैं। उन्होंने विधवाओं का पुनर्विवाह कराया। उन्होंने छुआछूत का सदा विरोध किया। वे मानते थे कि जन्म से कोई अछूत नहीं होता। स्वामी जी ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और जीव पूजा का समर्थन किया।  वे मानते थे कि भारत की गुलामी के मूल में मूर्ति पूजा ही रही है। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा पर बल दिया जिसका मुख्य नाम है ‘ओ३म्‌’ । उन्होंने लोगों को यज्ञ करने की प्रेरणा दी। उन्होंने पाखण्ड और अन्धविश्वास का हमेशा विरोध किया। शास्त्रार्थ किये। विश्वभर के विद्वानों को उनके आगे घुटने टेकने पड़े। वे एक महान्‌ योद्धा थे। उन्होंने वेदों का भाष्य हिन्दी में किया। स्वामी दयानन्द का प्रमुख ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ है जिसमें ईश्वर के 108 नामों की व्याखा व 1576 वेद मन्त्रों का विवरण दिया गया है।
उन्होंने सन्‌ 1875 में बम्बई (मुम्बई) में आर्य समाज की स्थापना की। आज आर्य समाज के करोड़ों सदस्य महर्षि के काम को आगे बढ़ा र्हैं। महात्मा गान्धी ने भी लिखा है- महर्षि दयानन्द सरस्वती भारत के आधुनिक ॠषियों व सुधारकों में श्रेष्ठ और अग्रणी थे। उनके कारण ही आज भारत  पुन: विश्व गुरू बनने को अग्रसर हो रहा है।
धन्य हैं ऋषि हैं आप, आपने जग जगा दिया। महर्षि दयानन्द सरस्वती के 187वें वर्ष पर हम उन्हें शत्‌शत्‌ नमन करते हैं।
• सुरेश आर्य
मन्त्री, आर्य समाज, वृन्दावन गार्डन, सहिबाबाद, उ.प्र.

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

छुक-छुक

छुक-छुक का मज़ा
छुक-छुक का मज़ा
बरसों पहले राजा की मण्डी, आगरा से फ़ीरोज़ाबाद पेसेन्जर रेल गाड़ी से जाते समय खींचा गया यह फ़ोटो जब भी मैं देखता हूं मुझे आनन्द देता है। इसे देख लगता है जैसे खिड़की पर बैठकर इसे मनचाहा सब मिल गया। यह मुस्कराता बालक अब काफ़ी बड़ा हो गया होगा। सम्भव है कि इन्टरनेट पर कभी खोज के दौरान उसे अपना यह फ़ोटो दिखाई दे जाए!
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शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

राष्ट्र-शत्रु

नर्मदा कुम्भ में राष्ट्र-शत्रुओं की पोल खुली

नर्मदा कुम्भ में राष्ट्र-शत्रुओं का प्रक्षालन 
ईसाइयों की जैसी आशंका या उनका जैसा आरोप था वैसा कुछ भी नहीं हुआ। नर्मदा कुम्भ का भव्य शुभारंभ हो गया। वनवासी हो या मतांतरित ईसाई कोई न तो डरा और न ही रुका। लेकिन कॉंग्रेस और ईसाई मिशनरी जरुर डरे। ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जॉन दयाल की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कुंभ के आयोजकों पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि ईसाई समाज की प्रार्थना सभाओं में बाधा डालने की कोशिश की जा रही है। ईसाई परिवारों में जाकर उन्हें वापस हिंदू बनने के लिए दबाव डाला जा रहा है। उधर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेश पचौरी और कॉंग्रेस के ही महासचिव दिग्विजय सिंह ने बार-बार नर्मदा कुम्भ पर रोक लगाने की मांग की है। 
ईसाई मिशनरियों के सुर में सुर मिलाते हुए कॉंग्रेस के नेताओं ने नर्मदा सामाजिक कुम्भ को भाजपा का आयोजन बताया। दरअसल कॉंग्रेस के नेताओं में मिशनरियों को पीछे छोड़ देने की होड़ लगी हैड। कॉंग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में नर्मदा कुम्भ के आयोजन से एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई पैदा हो गयी गई। कॉंग्रेस सांप-छछूंदर की स्थिति में है। कॉंग्रेस के नेता, ईसाईं मिशनरी, सोनिया और वनवासियों को एक साथ खुश करना चाहते हैं। नेताओं को डर है कि अगर ये खुश नहीं हुए तो नाराज हो जायेंगे। वे ये भी जानते है कि ये तीनों एक साथ खुश भी नहीं हो सकते। असमंजस की स्थिति में कॉंग्रेस के नेताओं ने तय किया कि अभी तो कांग्रेसमाता सोनिया और ईसाई मिशनरी को ही खुश किया जाए। अभी अनुसूचित जनजाति के वोट की दरकार कोंग्रेस को नहीं। आने वाला चुनाव उत्तरप्रदेश में है इसलिए वनवासी समाज के नाराज होने से कॉंग्रेस की राजनीतिक सेहत पर तत्काल कोई असर नहीं पडने वाला। मुसलमानों की ही तरह वनवासी (कॉंग्रेस के आदिवासी) भी कॉंग्रेस के लिए सिर्फ वोट बैंक हैं। इस कुम्भ से वोट बैंक पर तत्काल कोइ खतरा नहीं।
मध्यप्रदेश के मंडला में आयोजित तीन दिवसीय नर्मदा सामाजिक कुम्भ पर कॉंग्रेस और मिशनरियों का एक ही सुर है। पोप, जॉन दयाल, सोनिया माइनो और सुरेश पचौरी-दिग्विजय एक ही राग अलाप रहे है। कॉंग्रेस के नेताओं ने अपने आम कार्यकर्ताओं के खिलाफ जाकर इस कुम्भ का विरोध किया तो उसका कारण हर हाल में सोनिया और मिशनरियों को प्रसन्न करना है। कॉंग्रेस नेता सुरेश पचौरी ने नर्मदा कुंभ को सनातन धर्म की मान्यताओं के विरुद्व बताते हुये इस पर मध्यप्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून 1968 के अंतर्गत तत्काल रोक लगाने की मांग की है। केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् एवं प्रदेश के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर को लिखे पत्र में उक्त आशय का आग्रह करते हुये उन्होंने कहा है कि कथित कुंभ में अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा फैलाने के लिये आपत्तिजनक पर्चों का वितरण किया जा रहा है जो घोर निंदनीय है।
दरअसल काग्रेस के नेताओं ने वास्ताविकता से आँखे मींचने की कोशिश की है। मिशनरियों के इशारे पर संघ, भाजपा और कुम्भ आयोजकों पर आरोप लगा कर वे स्वयं ही अपनी किरकिरी करा रहे है। मंडला की स्थानीय ईसाई संस्थाएँ कुम्भ में आयोजकों का सहयोग कर रही हैं। उन्होंने यहाँ अपने कैम्प और स्टॉल भी लगाए। जहां तक मतांतरित ईसाइयों के घर वापसी का सवाल है तो जब सामान्य हिन्दू नर्मदा में स्नान करके अपने पापों से मुक्त हों जाते है तो फिर नि:संदेह मतांतरित हिन्दू भी अपने पापों से मुक्त हों सकते है। नर्मदा कुम्भ के आयोजक प्रत्यक्ष तौर पर तो "घर वापसी" के किसी कार्यक्रम से भले ही इंकार कर रहे है, लेकिन नर्मदा स्नान से कितनी बडी घर वापसी हो रही है इसका अंदाजा न तो सोनिया माइनो कों है और न ही जॉन दयाल को। नर्मदा कुम्भ के आयोजकों की कोशिश है कि नर्मदा स्नान को पापमुक्ति, शुद्धिकारण और घर वापसी के तंत्र के रुप में स्थापित कर दिया जाए। घर वापसी के लिए नर्मदा स्नान का मन्त्र देने में आयोजक सफल रहे। इंकार करने से भी यह सच झूठ नहीं हों सकता कि 10 से 12 फरवरी तक होने वाले इस तीन दिवसीय आयोजन में लाखों हिन्दू अपने पापों से मुक्त होंगे, वहीं हजारों मतांतरित हिन्दू अपने मतांतरण-पाप से भी मुक्त होंगे. उल्लेखनीय है कि नर्मदा सामाजिक कुंभ हिन्दू समाज एक अनूठा आयोजन है।
यह सर्वविदित है कि संघ और अनेक हिन्दूवादी संगठन पोप और उनके मतांतरण तंत्र चर्च और मिशनरी  गतिविधियों से काफी चिंतित है। मध्यप्रदेश में गठित नियोगी और रेगे कमिटी ने भी मतान्तरण के खतरे के प्रति आगाह किया था। राज्य सरकार की लापरवाही के कारण चर्च और मिशनरियों ने स्वच्छंद होकर मतान्तरण किया। गाँव-गाँव तक अपना जाल फैलाया। संघ जब चेता तब तक काफी देर हों चुकी थी. अब मतान्तरण और घर वापसी राजनीतिक मुद्दा बन गया है।
संघ ने वर्षों पहले (२००२) झाबुआ में "हिन्दू संगम"  का आयोजन किया था। बाद में वर्ष 2006 मे गुजरात में शबरी कुम्भ और अब मंडला में नर्मदा सामाजिक कुम्भ। आयोजक सार्वजनिक तौर पर चाहे कुछ भी कहें उनका एजेंडा स्पष्ट है। संघ वनवासियों में पहचान की अस्मिता जागृत करना ही है। यह आयोजन हिन्दू धर्म के प्रति आस्था रखने, राष्ट्रीय एकता का भाव जगाने तथा सामाजिक समरसता का अलख जगाने हेतु किया जाता  है। संतों के मुताबिक, माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ का उद्देश्य आदिवासियों की संस्कृति, उनकी पहचान और जीवन शैली ही नहीं बल्कि उनके आराध्य देव (बूढ़ा देव) के प्रति उनकी आस्था पर होने वाले आघात से उन्हें सुरक्षित करना भी है। संघ और उनसे जुड़े आयोजक भोले- भाले वनवासियों को धर्मातरण के कुचक्र से बचाने की कवायद में है। नर्मदा तट पर जमा हुए करीब दो लाख लोगों के जनसमुदाय से यह आह्वान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और विश्व हिंदू परिषद नेता प्रवीण तोगड़िया और ऐसे ही कई नेताओं ने मंडला में मतान्तण रोकने का आह्वान किया। मोहन भागवत ने कहा कि जब शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं वनवासियों को मिलेंगी तो उन्हें कोई लालच देकर धर्मातरित नहीं कर सकेगा। स्वामी सत्य मित्रानंद सरस्वती ने ईसाई मत ग्रहण करने वाले वनवासियों को उल्लू की संज्ञा देते हुए कहा कि उन्हें दिन के उजाले में भी कुछ नजर नहीं आता है। ओंकारेश्वर से आए स्वामी हरिहरानंद ने कहा कि दो-ढाई हजार साल पहले उत्पन्न हुए धर्म के कीट-पतंगे हमारे भोले-भाले लोगों को बरगला कर उनका धर्म परिवर्तित कर रहे हैं। सभी वक्ताओं ने अपने-अपने तरीके से कहा कि धर्म बदलने के बाद व्यक्ति अपने पूर्वजों को भूल जाता है फिर उसकी निष्ठाएं बदल जाती हैं। संघ की चिंता है मतान्तण से राष्ट्रान्तरण होता है। एक हिन्दू का मतान्तरण होने से सिर्फ एक ईसाई या एक मुसलमान नहीं बढता बल्कि देश का एक शत्रु बढ़ता है। संघ अब नर्मदा जल से शत्रु प्रक्षालण करेगा। एक-एक मतांतरित ईसाई और मुसलमान को देशभक्त हिन्दू बनायेगा।
ईसाइयों के वरिष्ठ प्रतिनिधि और ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जॉन दयाल का नर्मदा कुम्भ पर छाती पीटना स्वाभाविक है। वर्षों की मेहनत और करोड़ों-अरबों खर्च कर जो काम किया वह नर्मदा जल से यूं ही धुल जाए, यह चर्च और मिशनरियों को कैसे सुहायेगा। लोभ,लालच और छल से किया गया धर्मं परिवर्तन एक झटके में नर्मदा मैया के प्रवाह में बह जाए इसे जॉन दयाल कैसे पचा पाएगा। क्या जवाब देंगे अपने आका को। वे किसा मुंह से पोप को बताएँगे कि कितना खोखला है उनकी ईसाइयत का मुलम्मा। जैसे पचौरी को सोनिया के सवालों का डर है, शायद जॉन दयाल भी पोप के सवालों से डरे हैं। कुम्भ के आयोजकों ने सवाल किया है नर्मदा कुम्भ से कोइ देशभक्त भयातुर नहीं है, ईसाई मिशनरी क्यों डर रहे है। संघ की कोशिश है एक बार वनवासी समाज जागरूक और सचेत हों जाए तो फिर चर्च भी कुछ नहीं कर सकेगा।
राजनीतिक दल भी उसे सिर्फ वोटबैंक नहीं मानेंगे. तब चाहे भाजपा, कांग्रेस हों या गोंडवाना पार्टी, चर्च-मिशनरी हों या इस्लामिक ताकतें कोइ भी वनवासियों को बरगला नहीं सकेगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि समाज के क्रियाशील हुए बिना धर्मातरण नहीं रुक सकता। कुंभ में हम यह संकल्प लें कि हम हिंदू समाज में व्याप्त छुआछूत को समाप्त करने के लिए काम करेंगे। विद्या दान करेंगे, अन्नदान करेंगे। संघ ने हर चार साल में सामाजिक कुंभ का ताना-बाना बुन दिया है। पहले 2006 गुजरात में शबरी कुंभ और उसके बाद 2006 ऐसा मध्यप्रदेश के मंडला में नर्मदा कुम्भ। आयोजकों ने हर पांच साल में इस तरह के सामाजिक कुंभ की योजना पहले ही बना रखी है। संघ नेताओं का कहना है कि असली हिंदुत्व तो वनवासियों ने ही बचा रखा है। धार्मिक कुंभ नासिक, उज्जैन, इलाहबाद और वाराणसी में होता आया है। वनवासियों का यहा सामाजिक कुम्भ भी हर चौथे साल में आयोजित होगा। वनवासी क्षेत्र ज्यादातर दुर्गम इलाको में है इसलिए सामाजिक कुम्भ भी सुदूर दुर्गम क्षेत्रों में ही होगा। संभव है अगला कुम्भ झारखंड या पूर्वोत्तर क्षेत्र में कही आयोजित हो। गौर करने लायक यह बात है कि संघ जहां अपनी पद्धति से काम कर रहा है, वही कॉंग्रेस और मिशनरी भी अपनी स्टाइल में विरोध कर रहे हैं। अभी तो संघ का पलडा भारी दिखता है।
कॉंग्रेस और मिशनरी ने प्रेस और मीडिया के जरिये ज्ञापन देकर अपना विरोध प्रकट किया है। इन्होंने शबरी कुम्भ के समय भी ऐसा ही किया था। संघ ने देशभर से लाखों वनवासियों को इकट्ठा कर विरोधियों कों उनकी औकात बता दी है. संघ ने नर्मदा जयन्ती पर लाखों वनवासियों और नर्मदा भक्तों के बीच वनवासी पहचान को बचाने और मतांतरण को रोकने का आह्वान किया। भाजपा को संघ और सरकार के प्रयासों का लाभ तो मिलना ही है। वहीं कोंग्रेस अपनी छाती पीटती रही। कॉंग्रेस के नेता चाहते तो इस कुम्भ में भागीदार होकर वनवासियों की इतनी बड़ी उपस्थिति का लाभ ले सकते थे  लेकिन अपने आलाकमान सोनिया की नाराजगी के डर से वे यह भी नहीं कर सके।
• अनिल सौमित्र
विस्फ़ोट
Anil Saumitraजनसंचार माध्यमों की पहुंच विषय पर शोध करनेवाले अनिल सौमित्र भोपाल में रहते हैं. सामाजिक कार्य के अलावा स्वतंत्र पत्रकारिता और मीडिया एक्टिविस्ट के रूप में कार्यरत। विश्व संवाद केन्द्र में भी सक्रिय हैं।


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धार्मिक उन्माद फैलाने में लगा रहा जॉन दयाल
जॉन दयाल
मॉं नर्मदा सामाजिक कुंभ की की तारीख नजदीक आते देख, मध्यप्रदेश के अनेक ईसाई नेताओ की घबराहट ब़ढ गयी। नर्मदा नदी के किनारे होने वाले इस आयोजन मॉं नर्मदा सामाजिक कुंभ की व्यापक पैमाने पर पिछले एक वर्तैष से तैयारियां चल रही थीं। यह आयोजन धर्म के प्रति आस्था व श्रद्धा पक्की करने, राष्ट्रीय एकात्मता और एकता का भाव जगाने तथा सामाजिक समरसता का अलख जगाने हेतु किया गया। तीन दिन के इस कुंभ में लाखों वन वासियों के जुटने की उम्मीद थी। 
छत्तीसगढ़ की सीमाओं को छूने वाले मण्डला में मां नर्मदा सामाजिक कुंभ 10, 11 और 12 फरवरी को होना तय हुआ था। 
राजधानी के कुछ अंग्रेजी अखबारों से जुड़े रहे एक पत्रकार से ईसाई नेता बने जॉन  दयाल की ओर से इस मुद्दे को लेकर एक विज्ञप्ति भी जारी की गयी। प्रेस विज्ञप्ति में यह कहा गया कि कुंभ मेले में ईसाइयों को हिंदू बनाने की तैयारी चल रही है। जॉन दयाल "ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन” के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। जॉन  दयाल ने कुंभ के आयोजको पर बेबुनियाद आरोप लगाते हुए कहा कि कई ईसाई परिवारों में जाकर वनवासियों पर वापस हिंदू बनने के लिए दबाव डाल रहे हैं और ईसाई समाज की प्रार्थना सभाओं में बाधा डालने की कोशिश की जा रही है। 
वास्तविकता यही है कि मण्डला में बीते वर्षो में ईसाई मिशनरियां तरह-तरह के हथकण्डे अपनाकर भोलेभाले लोगों को भ्रमित कर धर्मातरण का जाल तेजी से फैलाती रही हैं। अपनी चालबाजी में ईसाई मिशनरियां सफ़ल भी हुई हैं। 
माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ का उद्देश्य आदिवासियों की संस्कृति, उनकी पहचान और जीवन शैली ही नहीं बल्कि उनके आराध्य बड़ा देव या बूढ़ा देव के प्रति उनकी आस्था पर होने वाले आघात से उन्हें सुरक्षित करना भी है।
दूसरी ओर जॉन दयाल के बयान से पल्ला झाड़ते हुए मंडला के स्थानीय ईसाई संगठनों ने कुम्भ का स्वागत किया है। जहाँ मंडला के ईसाई और मुस्लिम परिवारों ने इस कुंभ का स्वागत किया है वहीँ जॉन दयाल का इस तरह का गैरजिम्मेदारी भरा बयान देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा  है। जॉन दयाल जैसे माहौल बिगाड़ने की कोशिश करने वाले लोगों के खिलाफ शासन को कठोर कार्यवाही करनी चाहिए ताकि फ़िर कोई और ऐसा करने हिम्मत ही न कर सके। 

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