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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

एसएमएस

जरूरी एसएमएस चालू रखने के लिए भी हैं उपाय
ट्राई ने टेलीमार्केटिंग कंपनियों की अनचाही कॉलों से फोन उपभोक्ताओं को बचाने के लिए नेशनल डू नॉट कॉल रजिस्ट्री [एनडीएनसी] की व्यवस्था लागू की है। एनडीएनसी एक डाटा बेस है, जिसमें अपने मोबाइल नंबर का रजिस्ट्रेशन कराने वाले ग्राहकों को उनकी मर्जी के बगैर कोई कंपनी प्रमोशनल स्कीमों के बारे में बताने के लिए फोन नहीं कर सकती।
ट्राई के नए नियम के तहत 27 सितंबर यानी महालया के दिन से अनचाही कॉल्स और एसएमएस से छुटकारा मिल जाएगा। मगर यह छुटकारा कहीं आपके लिए मंहगा न साबित हो जाए। ट्राई के मोबाइलधारकों को अवांछित विज्ञापन वाले एसएमएस से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से यह नियम लागू कर रहा है। मगर जिसमें इसमें आपके बैंक व दूसरे एसएमएस भी बंद हो जाएंगे। हालांकि ट्राई ने आपके जरूरी एसएमएस आप तक पहुंचने के भी इंतजाम किए हैं। मैसेज बंद करने के साथ आपको यह भी जानना जरूरी होगा कि अपने जरूरी संदेश कैसे चालू रखें। यह रोक उन लोगों पर है जो ज्यादा संदेश भेजते हैं। अब आप एक दिन में 100 एसएमएस से अधिक नहीं भेज पाएंगे। खुशी इस बात की है कि अब आपको अधिक अनचाहे एसएमएस नहीं झेलने पड़ेंगे। ट्राई ने अपनी वेबसाइट पर सारी जानकारी अपलोड कर दी है। साथ ही सभी मोबाइल कंपनियों को आदेश जारी कर दिया है।
अभी यह सुविधा सिर्फ उन्हीं मोबाइल ग्राहकों को मिलेगी जिन्होंने डू नॉट कॉल [कॉल नहीं करें] पर अपना नंबर रजिस्ट्री करा रखा है। अगर आपने अभी तक इसके लिए पंजीकरण नहीं कराया है तो अभी देर नहीं हुई है। मोबाइल उठाइए और टोल फ्री नंबर 1909 पर एसएमएस कर वक्त बेवक्त आने वाले कॉल और एसएमएस से मुक्ति पाइए।
टेलीमार्केटिंग कंपनियों की कॉल 140 से शुरू होने वाले नंबरों से ही आएगी। दूरसंचार विभाग ने देश भर की मोबाइल और लैंडलाइन सेवा देने वाली कंपनियों को टेलीमार्केटिंग के लिए यह सीरीज जारी की है। सभी ऑपरेटर अब टेलीमार्केटिंग करने वालों को इसी सीरीज के नंबर जारी करेंगे।  वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को एक टेलीमार्केटिंग कंपनी द्वारा होम लोन की पेशकश किए जाने के बाद ही इस मामले ने तूल पकड़ा। उसके बाद ही दूरसंचार विभाग इसे लेकर सक्रिय हुआ।
कैसे उठाएं फायदा
नेशनल डू नॉट कॉल रजिस्ट्री [एनडीएनसी] में नाम दर्ज कराने के लिए ग्राहकों को पहले अंग्रेजी में स्टार्ट 0 लिखकर 1909 पर एक एसएमएस भेजना होगा। इसके बाद उन्हें एक पंजीयन संख्या मिलेगी। इस टोल फ्री नंबर पर फोन करके भी पंजीयन करवाया जा सकता है। पंजीयन के ठीक 7 दिनों के भीतर ग्राहक को एनडीएनसी की यह सेवा मिलने लगेगी।
उपभोक्ताओं के पास ऐसी कॉल पर 'पूरी तरह रोक लगाने' [फुली ब्लॉक्ड] और 'आंशिक तौर पर बंद' [पार्शियली ब्लॉक्ड] का विकल्प होगा। दूसरे विकल्प को चुनने पर उसे चुनिंदा श्रेणी के एसएमएस मिलेंगे। उपभोक्ताओं के पास अनचाही कॉल पर पूरी तरह रोक लगाने (फुली ब्लॉक्ड) का विकल्प होगा जो डू नॉट काल रजिस्ट्री जैसा है. अगर उपभोक्ता आंशिक तौर पर बंद (पार्शियली ब्लॉक्ड) का विकल्प चुनता है तो उसे चुनिंदा श्रेणी के एसएमएस मिलेंगे.ट्राई ने नेशनल कंज्यूमर प्रेफरेंस रजिस्ट्री में बैंकिंग और वित्तीय उत्पाद, रीयल एस्टेट, शिक्षा, स्वास्थ्य, उपभोक्ता उत्पाद, वाहन, संचार व मनोरंजन, पर्यटन खंड शामिल किए हैं। अनचाही कॉल पूरी तरह से बंद करने के लिए उपभोक्ता 'स्टार्ट 0' टाइप कर 1909 (SMS “START 0″ to 1909) पर एक एसएमएस भेज सकते हैं।
अगर आपको आंशिक तैर पर काल प्रतिबंधित करना है तो इस तरह रजिस्टर करिए। पहले लिखिए  SMS START इसके बाद उसके वह कोड लिखिए जिसे आप चालू रखना चाहते हैं। ( इस तरह लिखिए- SMS “START 1” ) अब इसे 1909 पर भेज दीजिए। अलग-अलग क्षेत्रों के कोड इस प्रकार हैं।
SMS “START 1”  ( बैंकिंग, बीमा, वित्तीय उत्पाद और क्रेडिट कार्ड के लिए।)
SMS “START 2” ( रीयल इस्टेट के लिए)
SMS “START 3” ( शिक्षा के लिए )
SMS “START 4” ( स्वास्थ्य के लिए )
SMS “START 5” ( उपभोक्ता वस्तुएं और आटोमोबाईल्स )
SMS “START 6” ( संचार, प्रसारण, मनोरंजन, सूचना तकनीक के लिए )
SMS “START 7” ( पर्यटन के लिए)
अगर इनमें से कई को एक साथ चुनना है तो उन सभी को एक साथ भेजना होगा। उदाहरण के तौर पर आपको 3,4,5 कोड चुनना है तो इस तरह लिखकर भेजिए--
SMS “START 3,4,5″ to 1909.
रजिस्ट्रेशन के सातदिन बाद उपभोक्ता अपनी वरीयताएं बदल भी सकता है। अगर रजिस्ट्रेशन के बाद भी अनचाही काल्स आ रही हैं तो उपभोक्ता अपनी शिकायत भी दर्ज करा सकता है। वह इसे 1909 पर फोन करके या संदेश भेजकर शिकायत दर्ज करा सकता है। शिकायत इस तरह लिखकर भेजें-
SMS COMP TEL NO XXXXXXXXXX, dd/mm/yy, Time hh:mm  और इसे 1909 पर भेज दें। टेलीफोन नंबर की जगह संदेश की हेडिंग भी लिखी जा सकती है।
अगर आप अपना रजिस्ट्रेशन रद्द करके सभी संदेश पहले की तरह पाना चाहते हैं तो 1909 पर फोन करके कस्टमरकेयर से बात करके रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकते हैं। संदेश भेजकर भी रजिस्ट्रेशन रद्द करा सकते हैं। इसके लिए इस तरह संदेश भेजिए--
SMS “STOP” और इसे 1909 पर भेज दीजिए। इसके बाद आपके जो संदेश मिलेगा उसे रिप्लाई करके अपने आवेदन की पुष्टि कर दें।
क्या है डू नॉट कॉल रजिस्ट्री
ट्राई ने टेलीमार्केटिंग कंपनियों की अनचाही कॉलों से फोन उपभोक्ताओं को बचाने के लिए नेशनल डू नॉट कॉल रजिस्ट्री [एनडीएनसी] की व्यवस्था लागू की है। एनडीएनसी एक डाटा बेस है, जिसमें अपने मोबाइल नंबर का रजिस्ट्रेशन कराने वाले ग्राहकों को उनकी मर्जी के बगैर कोई कंपनी प्रमोशनल स्कीमों के बारे में बताने के लिए फोन नहीं कर सकती। कोई टेलीमार्केटर कंपनी एनडीएनसी रजिस्ट्री लिस्ट को चेक करने के बाद ही इसमें गैर पंजीकृत मोबाइल नंबरों पर ही टेलीमार्केटिंग कॉल कर सकती है। यदि एनडीएनसी में पंजीकृत कराने के बावजूद किसी नंबर पर अनचाही कॉल आती हैं तो संबंधित कंपनी पर जुर्माने का दावा किया जा सकता है।
कंपनियों पर लगेगा जुर्माना
इस नियम को तोड़ने वाली कंपनियों को पहली गलती पर 25 हजार रुपये, दूसरी गलती पर 75 हजार रुपये तक का दंड भरना पड़ सकता है। तीसरी बार दंड राशि बढ़कर 80 हजार रुपये, चौथी बार 1.25 लाख रुपये और पांचवी बार 2.5 लाख रुपये तक हो जाएगी। इसके बाद भी अगर टेलीमार्केटिंग कंपनी अपनी हरकतों से बाज नहीं आती है तो उसे दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट [प्रतिबंधित] कर दिया जाएगा।
प्रस्तुति: डॉ. मांधाता सिंह /हमारा वतन


बुधवार, 14 सितंबर 2011

मुठूतादेश

कम्पनी सचिव शाइनी थॉमस के हस्ताक्षर से जारी इस सर्कुलर में पुरुष एवं स्त्री कर्मचारियों के ड्रेसकोड सम्बन्धी स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गये हैं, जिसके अनुसार पुरुष कर्मचारी साफ़सुथरे कपड़े, पैण्ट-शर्ट पहनकर आएंगे, बाल ठीक से बने हों एवं क्लीन-शेव्ड रहेंगे… यहाँ तक तो सब ठीक है क्योंकि यह सामान्य दिशानिर्देश हैं जो लगभग हर कम्पनी में लागू होते हैं। परन्तु आगे कम्पनी कहती है कि पुरुष कर्मचारी घड़ी, चेन और सगाई(शादी) की अंगूठी के अलावा कुछ नहीं पहन सकते… पुरुष कर्मचारियों के शरीर पर किसी प्रकार का “धार्मिक अथवा सांस्कृतिक चिन्ह”, अर्थात चन्दन का तिलक (जो कि दक्षिणी राज्यों में आम बात है), कलाई पर बँधा हुआ मन्दिर का पवित्र कलावा अथवा रक्षाबन्धन के अगले दिन राखी, इत्यादि नहीं होना चाहिए।
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जिनके बच्चे “सेंट” वाले कॉन्वेटों में पढ़ते हैं, वे जानते होंगे कि स्कूल के यूनिफ़ॉर्म के अलावा भी इन बच्चों पर कितनी तरह के प्रतिबन्ध होते हैं, जैसे कि “पवित्र”(?) कॉन्वेंट में पढ़ने वाला लड़का अपने माथे पर तिलक लगाकर नहीं आ सकता, लड़कियाँ बिन्दी-चूड़ी पहनना तो दूर, त्यौहारों पर मेहंदी भी लगाकर नहीं आ सकतीं। स्कूलों में बच्चों द्वारा अंग्रेजी में बात करना तो अनिवार्य है ही, बच्चों के माँ-बाप की अंग्रेजी भी जाँची जाती है… कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि “सहनशील” (यानी दब्बू और डरपोक) हिन्दुओं के बच्चों को “स्कूल के अनुशासन, नियमों एवं ड्रेसकोड” का हवाला देकर उनकी “जड़ों” से दूर करने और उन्हें “भूरे मानसिक गुलाम बनाने” के प्रयास ठेठ निचले स्तर से ही प्रारम्भ हो जाते हैं। भारतीय संस्कृति और खासकर हिन्दुओं पर लगाए जा रहे इन “तालिबानी” प्रतिबन्धों को अक्सर हिन्दुओं द्वारा “स्कूल के अनुशासन और नियम” के नाम पर सह लिया जाता है। अव्वल तो कोई विरोध नहीं करता, क्योंकि एक सीमा तक मूर्ख और सेकुलर दिखने की चाहत वाली किस्म के हिन्दू इसके पक्ष में तर्क गढ़ने में माहिर हैं (उल्लेखनीय है कि ये वही लतखोर हिन्दू हैं, जिन्हें सरस्वती वन्दना भी साम्प्रदायिक लगती है और “सेकुलरिज़्म” की खातिर ये उसका भी त्याग कर सकते हैं)। यदि कोई इसका विरोध करता है तो या तो उसके बच्चे को स्कूल में परेशान किया जाता है, अथवा उसे स्कूल से ही चलता कर दिया जाता है।
वर्षों से चली आ रही इस हिन्दुओं की इस “सहनशीलता”(??) का फ़ायदा उठाकर इस “हिन्दू को गरियाओ, भारतीय संस्कृति को लतियाओ टाइप, सेकुलर-वामपंथी-कांग्रेसी अभियान” का अगला चरण अब कारपोरेट कम्पनी तक जा पहुँचा है। एक कम्पनी है “मुथूट फ़ाइनेंस एण्ड गोल्ड लोन कम्पनी” जिसकी शाखाएं अब पूरे भारत के वर्ग-2 श्रेणी के शहरों तक जा पहुँची हैं। यह कम्पनी सोना गिरवी रखकर उस कीमत का 80% पैसा कर्ज़ देती है (प्रकारांतर से कहें तो गरीबों और मध्यम वर्ग का खून चूसने वाली “साहूकारी” कम्पनी है)। इस कम्पनी का मुख्यालय केरल में है, जो कि पिछले 10 वर्षों में इस्लामी आतंकवादियों का स्वर्ग एवं एवेंजेलिस्ट ईसाईयों का गढ़ राज्य बन चुका है। हाल ही में इस कम्पनी के मुख्यालय से यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों हेतु “ड्रेसकोड के नियम” जारी किये गये हैं (देखें चित्र में)।
कम्पनी सचिव शाइनी थॉमस के हस्ताक्षर से जारी इस सर्कुलर में पुरुष एवं स्त्री कर्मचारियों के ड्रेसकोड सम्बन्धी स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गये हैं, जिसके अनुसार पुरुष कर्मचारी साफ़सुथरे कपड़े, पैण्ट-शर्ट पहनकर आएंगे, बाल ठीक से बने हों एवं क्लीन-शेव्ड रहेंगे… यहाँ तक तो सब ठीक है क्योंकि यह सामान्य दिशानिर्देश हैं जो लगभग हर कम्पनी में लागू होते हैं। परन्तु आगे कम्पनी कहती है कि पुरुष कर्मचारी घड़ी, चेन और सगाई(शादी) की अंगूठी के अलावा कुछ नहीं पहन सकते… पुरुष कर्मचारियों के शरीर पर किसी प्रकार का “धार्मिक अथवा सांस्कृतिक चिन्ह”, अर्थात चन्दन का तिलक (जो कि दक्षिणी राज्यों में आम बात है), कलाई पर बँधा हुआ मन्दिर का पवित्र कलावा अथवा रक्षाबन्धन के अगले दिन राखी, इत्यादि नहीं होना चाहिए। कम्पनी का कहना है कि यह “कारपोरेट एटीकेट”(?) और “कारपोरेट कल्चर”(?) के तहत जरूरी है, ताकि ग्राहकों पर अच्छा असर पड़े (अच्छा असर यानी सेकुलर असर)।
लगभग इसी प्रकार के “तालिबानी” निर्देश महिला कर्मचारियों हेतु भी हैं, जिसमें उनसे साड़ी-सलवार कमीज में आने को कहा गया है, महिला कर्मचारी भी सिर्फ़ घड़ी, रिंग और चेन पहन सकती हैं (मंगलसूत्र अथवा कान की बाली नहीं)… इस निर्देश में भी आगे स्पष्ट कहा गया है कि महिलाएं ऑफ़िस में “बिन्दी अथवा सिन्दूर” नहीं लगा सकतीं। (बड़ा देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें)
अब कुछ असुविधाजनक सवाल “100 ग्राम अतिरिक्त बुद्धि” वाले बुद्धिजीवियों तथा “सेकुलरिज़्म के तलवे चाटने वाले” हिन्दुओं से–
(1). जब अमेरिका जैसे धुर ईसाई देश में भी हिन्दू कर्मचारी राखी पहनकर अथवा तिलक लगाकर दफ़्तर आ सकते हैं तो केरल में क्यों नहीं?
(2). कम्पनी के इन दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से “तिलक”, “बिन्दी” और “सिन्दूर” का ही उल्लेख क्यों किया गया है? “गले में क्रास”, “बकरा दाढ़ी” और “जालीदार सफ़ेद टोपी” का उल्लेख क्यों नहीं किया गया?
(3). सर्कुलर में “वेडिंग रिंग” पहनने की अनुमति है, जो कि मूलतः ईसाई संस्कृति से भारत में अब आम हो चुका रिवाज है, जबकि माथे पर चन्दन का त्रिपुण्ड लगाने की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह विशुद्ध भारतीय संस्कृति की पद्धति है।
ज़ाहिर है कि कम्पनी के मैनेजमेण्ट की “नीयत” (जो कि सेकुलर यानी मैली है) में खोट है, कम्पनी का सर्कुलर मुस्लिम महिलाओं को बुरका या हिजाब पहनने से नहीं रोकता, क्योंकि हाल ही में सिर्फ़ “मोहम्मद” शब्द का उल्लेख करने भर से एक ईसाई प्रोफ़ेसर अपना हाथ कटवा चुका है। परन्तु जहाँ तक हिन्दुओं की बात है, इनके मुँह पर थूका भी जा सकता है, क्योंकि ये “सहनशील”(?) और “सेकुलर”(?) होते हैं। ज़ाहिर है कि दोष हिन्दुओं (के Genes) में ही है। जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो कांग्रेस और वामपंथियों को भी क्या दोष दें वे तो अपने-अपने आकाओं (रोम या चीन) की मानसिकता और निर्देशों पर चलते हैं।
“सो कॉल्ड” सेकुलर हिन्दुओं से एक सवाल यह भी है कि यदि कोई “हिन्दू स्कूल” अपने स्कूल में यह यूनिफ़ॉर्म लागू कर दे कि प्रत्येक बच्चा (चाहे वह किसी भी धर्म का हो) चोटी रखकर, धोती पहनकर व तिलक लगाकर ही स्कूल आएगा, तो क्या इन सेकुलरों को दस्त नहीं लग जाएंगे?
इसी तरह बात-बात पर संघ और भाजपा का मुँह देखने और इन्हें कोसने वाले हिन्दुओं को भी अपने गिरेबान में झाँककर देखना चाहिए कि क्या कॉन्वेंट स्कूलों में उनका बेटा तिलक या बेटी बिन्दी लगाकर जाए और स्कूल प्रबन्धन मना करे तो उनमें स्कूल प्रबन्धन का विरोध करने की हिम्मत है? क्या अभी तक मुथूट फ़ायनेंस कम्पनी में काम कर रहे किसी हिन्दू कर्मचारी ने इस सर्कुलर का विरोध किया है? मुथूट फ़ायनेंस कम्पनी के इन दिशानिर्देशों के खिलाफ़ किसी हिन्दू संगठन ने कोई कदम उठाया? कोई विरोध किया? अभी तक तो नहीं…।
कुछ और नहीं तो, सलीम खान नाम के 10वीं के छात्र से ही कुछ सीख लेते, जिसने स्कूल यूनिफ़ॉर्म में अपनी दाढ़ी यह कहकर कटवाने से मना कर दिया था कि यह उसके धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। सलीम खान अपनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक ले गया और वहाँ उसने जीत हासिल की (यहाँ देखें http://muslimmedianetwork.com/mmn/?p=4575) । सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि सलीम को अपनी धार्मिक रीतिरिवाजों के पालन का पूरा अधिकार है इसलिए वह स्कूल में दाढ़ी बढ़ाकर आ सकता है। स्कूल प्रबन्धन उसे यूनिफ़ॉर्म के नाम पर क्लीन शेव्ड होने को बाध्य नहीं कर सकता।
तात्पर्य यह है कि विरोध नहीं किया गया तो इस प्रकार की “सेकुलर” गतिविधियाँ और नापाक हरकतें तो आये-दिन भारत में बढ़ना ही हैं, इसे रोका जा सकता है। इसे रोकने के तीन रास्ते हैं –
(1). पहला तरीका तो तालिबानियों वाला है, जिस प्रकार केरल में मोहम्मद का नाम लेने भर से एक ईसाई प्रोफ़ेसर का हाथ काट दिया गया, उसी प्रकार हिन्दू धर्म एवं देवी-देवताओं का अपमान करने वाले को स्वतः ही कठोर दण्ड दिया जाए। परन्तु यह रास्ता हिन्दुओं को रास नहीं आ सकता, क्योंकि हिन्दू स्वभावतः “बर्बर” हो ही नहीं सकते…
(2). दूसरा तरीका सलीम खान वाला है, यानी हिन्दू धर्म-संस्कृति पर हमला करने वालों अथवा “खामख्वाह का सेकुलरिज़्म ठूंसने वालों” को अदालत में घसीटा जाए और संवैधानिक तरीके से जीत हासिल की जाए। परन्तु “सेकुलरिज़्म” के कीटाणु इतने गहरे धँसे हुए हैं कि यह रास्ता अपनाने में भी हिन्दुओं को झिझक(?) महसूस होती है…
(3). तीसरा रास्ता है “बहिष्कार”, मुथूट फ़ायनेंस कम्पनी या किसी कॉन्वेंट स्कूल द्वारा जबरन अपने नियम थोपने के विरुद्ध उनका बहिष्कार करना चाहिए। इनकी जगह पर कोई दूसरा विकल्प खोजा जाए जैसे मणप्पुरम गोल्ड लोन कम्पनी अथवा कॉन्वेंट की बजाय कोई अन्य स्कूल…। इसमें दिक्कत यह है कि हिन्दू इतने लालची, मूर्ख और कई टुकड़ों में बँटे हुए हैं कि वे प्रभावशाली तरीके से ऐसी बातों का, ऐसी कम्पनियों का, ऐसे स्कूलों का बहिष्कार तक नहीं कर सकते…
एक बात और…कम्पनी कहती है कि बिन्दी-तिलक और सिन्दूर से उसके ग्राहकों पर “गलत प्रभाव”(?) पड़ सकता है, लेकिन इसी कम्पनी को चन्दन का त्रिपुण्ड लगाकर उनकी ब्रांच में सोना गिरवी रखने आये हिन्दू ग्राहकों से कोई तकलीफ़ नहीं है। बाकी तो आप समझदार हैं ही…
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नोट :- मेरा फ़र्ज़ है कि मैं इस प्रकार की घटनाओं और तथ्यों को जनता के समक्ष रखूं, जिसे जागना हो जागे, नहीं जागना हो तो सोता रहे। कश्मीर-नगालैण्ड में भी तो धीरे-धीरे हिन्दू अल्पसंख्यक हो गये हैं या होने वाले हैं, तो मैंने क्या उखाड़ लिया? अब पश्चिम बंगाल-केरल और असम में भी हो जाएंगे तो आप क्या उखाड़ लेंगे?
• सुरेश चिपलूणकर
(व्यापक जनहित में साभार)

सोमवार, 5 सितंबर 2011

महापुरूषों की दृष्टि में इस्लाम

इस्लाम व कुरान पर भारतीय महापुरुषों के विचार
महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम हैं। जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकती। श्रेष्ठ गैर मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता, जन्नत में अनेक औरतों और लौंडे होना आदि निन्दित उपदेश कुएं में डालने योग्य हैं । अनेक स्त्रियों को रखने वाले मुहम्मद साहब निर्दयी, राक्षस व विषयासक्त मनुष्य थे, एवं इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दसरा और कोई नहीं। इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ, दुराग्रह, ईर्ष्या विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया, न कि इसको बढ़ाने के लिए। सब सज्जनों के सामन रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है।
-सत्यार्थ प्रकाश १४ वां समुल्लास विक्रमी २०६१  
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स्वामी विवेकानन्द
ऐसा कोई अन्य मजहब नहीं जिसने इतना अधिक रक्तपात किया हो और अन्य के लिए इतना क्रूर हो। इनके अनुसार जो कुरान को नहीं मानता कत्ल कर दिया जाना चाहिए। उसको मारना उस पर दया करना है। जन्नत (जहां हूरे और अन्य सभी प्रकार की विलासिता सामग्री है) पाने का निश्चित तरीका गैर ईमान वालों को मारना है । इस्लाम द्वारा किया गया रक्तपात इसी विश्वास के कारण हुआ है। 
-कम्प्लीट वर्क आफ विवेकानन्द वॉल्यूम २ पृष्ठ २५२-२५३
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गुरु नानक देव जी
मुसलमान सैय्यद, शेख , मुगल पठान आदि सभी बहुत निर्दयी हो गए हैं। जो लोग मुसलमान नहीं बनते थें उनके शरीर में कीलें ठोककर एवं कुत्तों से नुचवाकर मरवा दिया जाता था।
-नानक प्रकाश तथा प्रेमनाथ जोशी की पुस्तक पैन इस्लाममिज्म रोलिंग बैंक पृष्ठ ८०
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महर्षि अरविन्द
हिन्दू मुस्लिम एकता असम्भव है क्योंकि मुस्लिम कुरान मत हिन्दू को मित्र रूप में सहन नहीं करता। हिन्दू मुस्लिम एकता का अर्थ हिन्दुओं की गुलामी नहीं होना चाहिए। इस सच्चाई की उपेक्षा करने से लाभ नहीं।किसी दिन हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ने हेतु तैयार होना चाहिए। हम भ्रमित न हों और समस्या के हल से पलायन न करें। हिन्दू मुस्लिम समस्या का हल अंग्रेजों के जाने से पहले सोच लेना चाहिए अन्यथा गृहयुद्ध के खतरे की सम्भावना है।
-ए बी पुरानी इवनिंग टाक्स विद अरविन्द पृष्ठ २९१-२८९-६६६
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सरदार वल्लभ भाई पटेल
मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को यहां फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था । मुसलमानों की पृथक बस्तियां बसाई जा रहीं हैं । मुस्लिम लीग के प्रवक्ताओं की वाणी में भरपूर विष है । मुसलमानों को अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए। मुसलमानों को अपनी मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गया हैं वे ही पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं, क्योंकि मुसलमान देश के विभाजन के अगुआ थे न कि पाकिस्तान के वासी। जिन लोगों ने मजहब के नाम पर विशेष सुविधांए चाहिंए वे पाकिस्तान चले जाएं इसीलिए उसका निर्माण हुआ है। वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि देश का पुनः विभाजन हो।
-संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार
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बाबा साहब भीम राव अंबेडकर
हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है, इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है। मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।
-प्रमाण सार डा अंबेडकर सम्पूर्ण वांग्मय , खण्ड १५१
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माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर गुरू जी
पाकिस्तान बनने के पश्चात जो मुसलमान भारत में रह गए हैं क्या उनकी हिन्दुओं के प्रति शत्रुता, उनकी हत्या, लूट दंगे, आगजनी , बलात्कार, आदि पुरानी मानसिकता बदल गयी है, ऐसा विश्वास करना आत्मघाती होगा। पाकिस्तान बनने के पश्चात हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम खतरा सैकड़ों गुणा बढ़ गया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ बढ़ रही है। दिल्ली से लेकर रामपुर और लखनऊ तक मुसलमान खतरनाक हथियारों की जमाखोरी कर रहे हैं। ताकि पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर वे अपने भाइयों की सहायता कर सके। अनेक भारतीय मुसलमान ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान के साथ लगातार सम्पर्क में हैं। सरकारी पदों पर आसीन मुसलमान भी राष्ट्र विरोधी गोष्ठियों में भाषण देते हैं। यदि यहां उनके हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे सशस्त्र क्रांति के खड़े होंगे।
-बंच आफ थाट्स पहला आंतरिक खतरा मुसलमान पृष्ठ १७७-१८७
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गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर
ईसाई व मुसलमान मत अन्य सभी को समाप्त करने हेतु कटिबद्ध हैं। उनका उद्देश्य केवल अपने मत पर चलना नहीं है अपितु मानव धर्म को नष्ट करना है। वे अपनी राष्ट्र भक्ति गैर मुस्लिम देश के प्रति नहीं रख सकते। वे संसार के किसी भी मुस्लिम एवं मुस्लिम देश के प्रति तो वफादार हो सकते हैं परन्तु किसी अन्य हिन्दू या हिन्दू देश के प्रति नहीं। सम्भवतः मुसलमान और हिन्दू कुछ समय के लिए एक दूसरे के प्रति बनवटी मित्रता तो स्थापित कर सकते हैं परन्तु स्थायी मित्रता नहीं।
- रवीन्द्र नाथ वांगमय २४ वां खण्ड पृष्ठ २७५ , टाइम्स आफ इंडिया १७-०४-१९२७ , कालान्तर
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लाला लाजपत राय
मुस्लिम कानून और मुस्लिम इतिहास को पढ़ने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उनका मजहब उनके अच्छे मार्ग में एक रुकावट है। मुसलमान जनतांत्रिक आधार पर हिन्दुस्तान पर शासन चलाने हेतु हिन्दुओं के साथ एक नहीं हो सकते। क्या कोई मुसलमान कुरान के विपरीत जा सकता है? हिन्दुओं के विरूद्ध कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा की क्या हमें एक होने देगी? मुझे डर है कि हिन्दुस्तान के ७ करोड़ मुसलमान अफगानिस्तान, मध्य एशिया अरब, मैसोपोटामिया और तुर्की के हथियारबंद गिरोह मिलकर अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देंगें।
-पत्र सी आर दास बी एस ए वांडमय खण्ड १५ पृष्ठ २७५
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समर्थ गुरू राम दास जी
छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू अपने ग्रंथ दास बोध में लिखते हैं कि मुसलमान शासकों द्वारा कुरान के अनुसार काफिर हिन्दू नारियों से बलात्कार किए गए जिससे दुःखी होकर अनेकों ने आत्महत्या कर ली । मुसलमान न बनने पर अनेक कत्ल किए एवं अगणित बच्चे अपने मां बाप को देखकर रोते रहे । मुसलमान आक्रमणकारी पशुओं के समान निर्दयी थे , उन्होंने धर्म परिवर्तन न करने वालों को जिन्दा ही धरती में दबा दिया ।
- डा एस डी कुलकर्णी कृत एन्कांउटर विद इस्लाम पृष्ठ २६७-२६८
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राजा राममोहन राय
मुसलमानों ने यह मान रखा है कि कुरान की आयतें अल्लाह का हुक्म हैं। और कुरान पर विश्वास न करने वालों का कत्ल करना उचित है। इसी कारण मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए, उनका वध किया, लूटा व उन्हें गुलाम बनाया।
-वाङ्मय-राजा राममोहन राय पृष्ट ७२६-७२७
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श्रीमति ऐनी बेसेन्ट
मुसलमानों के दिल में गैर मुसलमानों के विरूद्ध नंगी और बेशर्मी की हद तक तक नफरत हैं। हमने मुसलमान नेताओं को यह कहते हुए सुना है कि यदि अफगान भारत पर हमला करें तो वे मसलमानों की रक्षा और हिन्दुओं की हत्या करेंगे। मुसलमानों की पहली वफादार मुस्लिम देशों के प्रति हैं, हमारी मातृभूमि के लिए नहीं। यह भी ज्ञात हुआ है कि उनकी इच्छा अंग्रेजों के पश्चात यहां अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने की है न कि सारे संसार के स्वामी व प्रेमी परमात्मा का। स्वाधीन भारत के बारे में सोचते समय हमें मुस्लिम शासन के अंत के बारे में विचार करना होगा।
- कलकत्ता सेशन १९१७ डा बी एस ए सम्पूर्ण वाङ्मय खण्ड, पृष्ठ २७२-२७५
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स्वामी रामतीर्थ
अज्ञानी मुसलमानों का दिल ईश्वरीय प्रेम और मानवीय भाईचारे की शिक्षा के स्थान पर नफरत, अलगाववाद, पक्षपात और हिंसा से कूट कूट कर भरा है। मुसलमानों द्वारा लिखे गए इतिहास से इन तथ्यों की पुष्टि होती है। गैर मुसलमानों आर्य खालसा हिन्दुओं की बढ़ी संख्या में काफिर कहकर संहार किया गया। लाखों असहाय स्त्रियों को बिछौना बनाया गया। उनसे इस्लाम के रक्षकों ने अपनी काम पिपासा को शान्त किया। उनके घरों को छीना गया और हजारों हिन्दुओं को गुलाम बनाया गया। क्या यही है शांति का मजहब इस्लाम? कुछ एक उदाहरणों को छोड़कर अधिकांश मुसलमानों ने गैरों को काफिर माना है।
भारतीय महापुरूषों की दृष्टि में इस्लाम पृष्ठ ३५-३६
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स्रोत: हिन्दुस्तान गौरव




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