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शनिवार, 12 जनवरी 2013

विवेकानन्द जयती

मेवाड़ संस्थान  में मनायी गयी 
स्वामी विवेकानन्द की १५०वीं जयती








वसुन्धरा (गाजियाबाद) स्थित मेवाड़ संस्थान के मेवाड़ ऑडिटोरियम में स्वामी विवेकानन्द  की १५०वीं जयंती  १२ जनवरी २०१३ को बड़े धूम धाम से मनायी गयी।
इस अवसर पर स्वामी निखिलानन्द सरस्वती (चिनमय मिशन) और डा. अश्वनी महाजन (डी.ए,वी. कॉलेज,  दिल्ली विश्व विद्यालय), मुख्य अतिथि के रूप में विद्यमान थे। दीप प्रज्ज्वलन, स्वागत अभिवादन, वन्दे मातरम् एवं सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।
संस्थान के विभिन्न छात्र-छात्राओं ने अनेकानेक प्रकार से स्वामी जी के जीवन एवं उनके कार्यों तथा शिक्षाओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया। इस संदर्भ में संस्थान के छात्र-छात्राओं ने स्वामी जी के जीवन पर एक नाटक का मंचन भी किया। इस अवसर पर स्वामी जी द्वारा दी गयी सूक्तियों एवं निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। निबन्ध प्रतियोगिता में अजय कुमार शिक्षा विभाग को प्रथम, आकांक्षा शर्मा, एम.एस.सी. बायोटेक को द्वितीय, वरूण कुमार कम्प्यूटर विभाग को तृतीय, दीप्ति गुप्ता एल.एल.बी. ५ वर्षीय को चेयरमैन अवार्ड प्रदान किया गया। सूक्ति प्रतियोगिता में केशव बी.बी.ए. प्रथम, आकांक्षा, एम.एस.सी. बायोटेक द्वितीय एवं जे.ई.जया एल.एल.बी. ५ वर्षीय को तृतीय पुरस्कार दिया गया। इस अवसर पर प्रतियोगिता में सहभागी सभी छात्र-छात्राओं को नगद पुरस्कार प्रदान किये गये।
मुख्य अतिथि स्वामी निखिलानंद सरस्वती जी ने सभी छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज इस अवसर पर विवेक को प्रखर करने की जरूरत है। सही सोच सकारात्मक बुद्धि और निर्णय लेने की क्षमता हमें विवेकानन्द जी से सीखने को मिलती है। आज जरूरत है स्वंय को समझने की। इस सम्बन्ध में उन्होंने अनेक उदाहरण देकर समझाने का प्रयास किया।
कार्यक्रम का समापन करते हुए संस्थान के अध्यक्ष श्री अशोक कुमार गादिया ने स्वामी विवेकानन्द के जीवन से सम्बन्धित शिक्षाओं का वर्णन करते हुए कहा कि तुममें से ही किसी को विवेकानन्द बनना है। उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस एवं नरेन्द्र से विवेकानन्द बनने की  घटनाओं का वर्णन किया। अध्यक्ष ने स्वामी विवेकानन्द द्वारा मद्रास में दिये गये उनके भाषण को भी पढ़कर सुनाया और कहा कि इस अंश को सभी छात्र-छात्राओं को पढ़ना चाहिए। इसमें देश-प्रेम मानव सेवा कूट-कूटकर भरी है। जिस धर्म को साधु-संन्यासियों का धर्म कहा जाता था उसी धर्म का विवेकानन्द ने विश्व में परचम फहराया। आज जरूरत है उनके विचारों को समाज में लागू करने की।
विचार गोष्ठी 
स्वामी विवेकानन्द की १५०वीं जयंती के स्मरणोत्सव पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी सायं 4 बजे किया गया। प्राथमिक औपचारिकताओं के बाद विचार गोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं वक्ता प्रो. नरेन्द्र कोहली ने स्वामी विवेकानन्द के जीवन, वैराग्य, धर्म, विज्ञान, योग, वेदान्त, मीमांसा एवं दर्शन का विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि विवेकानन्द निश्चित रूप से उच्चकोटि के सन्त थे। उनकी सोच वैज्ञानिक सोच रही है, जिसकी आज के समय में नितान्त जरूरत है। प्रो. कोहली ने विचार गोष्ठी के दौरान धर्म, अध्यात्मिकता, योग, वेदान्त एवं दर्शन जैसे विषयों पर प्रश्नोत्तर के माध्यम से श्रोताओं की शंकाओं का समाधान भी किया।
कार्यक्रम के अन्त में संस्थान के अध्यक्ष श्री अशोक कुमार गादिया ने कहा कि ऐसी विचार गोष्ठियाँ समय-समय पर होती रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विवेकानन्द जैसे राष्ट्र सन्त की १५०वीं जयंती के अवसर पर इस विचार गोष्ठी की आवश्यकता और बढ़ जाती है। उन्होने कार्यक्रम में पधारे सभी लोगों को हार्दिक धन्यवाद दिया।
इस अवसर पर संस्थान के सभी छात्र-छात्राएं, अध्यापक, निदेशक डा. अलका अग्रवाल, डायरेक्टर जनरल ऑफ लॉ भारत भूषण एवं अनेक बुद्धिजीवी उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन शिक्षा विभाग की प्रवक्ता सुश्री तानिया गुप्ता और श्री बाबू लाल ने किया।
प्रस्तुति: टी.सी. चन्दर

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